(साभार:वेब) |
जाने कैसी-कैसी बातों में आ गए,
लोग
मज़हबी छलावों में आ
गए।
रूह
में झांकने का तो
है वक्त कहां
नादां
लिबास के दिखावों में
आ गए।
मुहब्बत
के पैगाम रुके कहां
हैं शेख
देखिए
ये ख़त किताबों में
आ गए
इस
दौर के बयानों की
क्या कहें
दिए
नहीं जो; रिसालों
में आ गए
ऐसी अदा
से देखा सवाल खो
गए
जवाब
सारे उन निगाहों में
आ गए
-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त
रिछारिया
4/05/2018
9:28 AM